Religion Culture: (धर्म संस्कृति)। एक देश को उस देश की संस्कृति परिभाषित करती है। किसी देश की संस्कृति का अनुमान लोग उसके पहनावे, खान पान और भाषा से लगाते हैं। किंतु संस्कृति इन सभी चीजों से कहीं व्यापक है। संस्कृति लोगों के आचरण और व्यवहार में झलकती है। भारत देश की संस्कृति के कारण ही यहां के लोगों में काफी आत्मीयता देखने को मिलती है। भारत की परंपरा में तो अतिथियों को देव आगमन के समान माना है। यहां के हर प्रांत हर राज्य में पहनावा, खान पान, भाषा और जनजातियां बदल जाती है लेकिन उनकी वासुदैव कुटुमब की भावना एक समान ही रहती है।
धर्म संस्कृति का प्राण है
संस्कृति में जीवन का मूलाधार धर्म है। यह भी कह सकते हैं कि धर्म संस्कृति का प्राण है। धर्म एक ऐसा व्यापक शब्द है जो समाज का इतिहास और जीवन की भूमिका प्रस्तुत करने में पूरी तरह समर्थ है। धर्म से मनुष्य का संपूर्ण जीवन प्रभावित होता है। सामाजिक कार्यक्रम धर्म के आधार पर ही तय हुए हैं। मनुष्य का कर्म धर्म पर ही निर्भर है, धर्म के बिना कर्म की सार्थकता नहीं है। अत: मनुष्य से जुड़े सभी कर्म धर्म से समाहित हैं। ऐसा इसलिए है कि मनुष्य को आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त हो सके, जिससे धर्मानुकूल आचरण करता रहे। महाभारत में भी कहा गया है- नष्ट किया गया धर्म उस नष्टकर्ता को ही नष्ट कर देता है। जो व्यक्ति धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। इसलिए मनुष्य को धर्म का हनन नहीं करना चाहिए। हमारे समाज में सामाजिक कार्यो में धर्म की अधिकता है। जो उसकी स्थित को सुदृढ़ करने में सहायक होता है।
धर्म उसी का नाम है जो उन्नति की तरफ ले जाएं
मनुष्य के जीवन में सुख की अनुभूति धर्म से होती है। भौतिक और आध्यात्मिक दोनों सुखों की प्राप्ति कर्म से संभव है। वाल्मीकि रामायण में यह उल्लेख है कि चरित्र इस प्रकार आदर्शमय होना चाहिए कि वह देवत्व तक पहुंच जाए। इसके अनुसार चरित्र ही धर्म है। भारतीय विचारकों ने आत्मा को उन्नत बनाने के लिए जो आचरण किए वही धर्म है। धर्म उसी का नाम है जो उन्नति की तरफ ले जाए। इतिहास व पुरातत्व इसके साक्षी हैं, हमारे यहां ऋषियों को केवल धार्मिक एवं नैतिक जीवन का ही नहीं वरन व्यावहारिक जीवन का भी निर्देशक स्वीकार किया गया है और वे सभी समाज के पथ प्रदर्शक रहे हैं। संस्कृति के मूल में अध्यात्म ज्ञान, धर्म, दर्शन आदि समाहित हैं। वहां सौंदर्य की उदात्त भावना भी समन्वित है।
धर्म और संस्कृति ने भारतीय मूल्यों को जीवंत रखा
धर्म एवं संस्कृति पर प्राय: होने वाली बहस में यह भुला दिया जाता है कि भारत की पहचान सदा से धर्म एवं संस्कृति ही रही है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां धर्म संस्कृति का आधार है, वहीं संस्कृति धर्म की संवाहिका है। दोनों ही अपने-अपने परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र के निर्माण एवं राष्ट्रीयता के संरक्षण में सहायक सिद्ध होते हैं। जहां धर्म अपनी स्वाभाविकता के साथ सामाजिक परिवेश का आधार बनता है, वहीं संस्कृति सामाजिक मूल्यों का स्थायी निर्माण करती है। कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि धर्म का सूत्र मानव के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करता है तो वहीं संस्कृति मानवीय संवेदनाओं को सामाजिक सरोकार से जोड़ती है। इस तरह धर्म कालांतर में संस्कृति का रक्षण करता है और संस्कृति धर्म के आधार का उन्नयन करती है।