
बैतूल। चित्त को हृदय को लगाना कठिन है, लेकिन भक्ति में बल है, भजन में बल है, स्मरण में बल है और आप यदि भगवत भजन में दिल से जुड़े हो तो मेरा महादेव भी दिल से प्रदान करता है। केवल भजन के बल को हमें बढ़ाना है, हमें भक्ति को बढ़ाना है। जिसने सम्पदा वस्तु, वैभव, लक्ष्मी, फैक्ट्री दुकान, कारखाने, बिजनेस कंपनी बनाई, धन कमाया करोड़पति, अरबपति भी कहलाया पूरे भारत की भूमि पर घूमकर आना उसकी एक भी मूर्ति किसी चौराहे पर नहीं मिलेगी, परन्तु जिसने इस शरीर के द्वारा अपने पैसे से स्कूल बनाकर गरीब को पढ़ा दिया उसकी मूर्ति चौराहे पर लगी है। एक जंगल में स्त्री जिसे कपड़े तक पहनने नहीं आते, जिसने थोड़े से पैसे बचाकर मोहल्ले के लोगों पढ़ाना शुरु किया, स्कूल खोला तो उस स्त्री को भी राष्ट्रपति अवार्ड मिल जाता है।
श्री मां ताप्ती महाशिवपुराण कथा के पांचवे दिन कोसमी फोरलेन शिवधाम से सीहोर वाले विश्वविख्यात कथा वाचक ने यह बातें कहीं। मां ताप्ती, भोलेनाथ और व्यासपीठ के पूजन के साथ ही पांचवे दिन की कथा प्रारंभ हुई। कथा श्रवण करने हर दिन श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। आज फोरलेन पर भी लोगों का जमावड़ा लग गया, पंडित मिश्रा ने सभी श्रद्धालुओं से सुरक्षित रहते हुए कथा श्रवण करने का आग्रह भी किया।
यहां देखें कथा स्थल पर अचानक प्रकट हुई शिवलिंग की आकृति
अखबार खोलों तो पता चलता है रिश्तेदार ने गलत कर दिया
कथा के दौरान पं. मिश्रा ने कहा कि पहले जंगल बहुत थे, जानवर भी बहुत थे, तो डर भी था। अब न जंगल बचे न जानवर बचे, पर आज भी लोगों को डर लगता है। पहले शेर, चीता, सांप खा जाएगा यह डर रहता था, अब इंसान इतने भयंकर हो गए कि इनसे डर लगने लगा है। एक दूसरे को खाने में लगा है इंसार, भाई-भाई की सम्पत्ति में को खाने में लगा है, कौन कब तुम्हें नुकसान पहुंचााएगा यह जानना कठिन हो गया है। जरा-जरा सी बेटियों को भरोसे पर छोड़कर जाते है और अखबार खोलों तो पता चलता है कि रिश्तेदार ने गलत कर दिया।

मनुष्य को कैसे पहचाने कि पीठ पीछे खड़ा होकर वही कुल्हाड़ी से वार कर देगा। दुनियां में सबसे जहरीला ककोई है तो वह इंसान है, तुम्हारे साथ रहेगा, एक थाली में खाएगा और कब चूना लगा देगा, कब निगल जाएगा ये मालूम नहीं पड़ेगा। शेर, चीते, सांप को पहचाना सरल है पर इंसान को पहचानना कठिन है।
दिल से पुकारों तो दौड़कर आते है भगवान
जिस तरह कोई बच्चा सो रहा है और एकदम चिल्ला दे तो मां को दौड़कर जाना पड़ता है और यदि वह दिन भर रोता है तो मां उस पर ध्यान नहीं देती वैसे ही हाथ में माला पकड़कर दिन भर राम-राम जपने से कुछ नहीं होता, भगवान को दिल से पुकारना वह दौड़कर आ जाएगे। बैतूल में पंडाल में भी महादेव आ गए। पानी की बूंदों में महादेव आए और दर्शन दे गए। एक लोटा जल भी महादेव को दिल से चढ़ाना। पे्रशर विद्या अध्ययन नहीं करा सकता, किताब-कॉपी जरुर खोल देगा पर प्रेशर ज्ञान प्रदान नहीं कर पाएगा।

पूरे भारत में लाखों कोचिंग है, बैतूल में भी बहुत कोचिंग चलती होगी। पूरे भारत में ज्ञान देने वाले भी करोड़ो है, हमारे जैसे भी ढेर सारे है पर ज्ञान जब मिलता है, जब इस शरीर के द्वारा हम कर्म करते है, कर्म करके जब हम आगे बढ़ते है, एक लोटा जल, एक बेलपत्र, एक चावल का दाना, फुल की पत्ती महादेव पर चढ़ाओं पर अपना कर्म भी करों, कर्म से पीछे नहीं हटना, जो कर्म करेगा भगवान उसको पकड़ लेगा। यह सोचकर भजन करों कि हम भगवान की दृष्टि में है।
सौगंध से नहीं छूटता व्यसन
गंगा, नर्मदा, ताप्ती में खड़ाकर सौगंध दिलाने से व्यसन नहीं छूटता, पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि अक्सर उनके पास माता-बहनों के पत्र आते है कि आप नशा-व्यसन छुड़ाने के लिए कसम दिलवा दो। कोई भी व्यक्ति सौगंध से व्यसन नहीं छोड़ेगा उसे भजन, भक्ति, स्मरण में छोड़ दो व्यसन छूट जाएगा। व्यसन छुड़ाना है तो मंदिर तक ले जाकर छोडऩा चालू कर दो। जब तक भजन-भक्ति का बल नहीं बड़ेगा तब तक दूसरा नशा कम नहीं होगा।
उन्होंने पंडाल में कथा सुनने का महात्म्य कोराना महामारी का उदाहरण देकर समझाते हुए कहा कि जिस तरह कोरोना की बीमारी टच करते-करते सबको हो जाती है, उसी तरह कथा पंडाल में बैठे लाखों लोगों में कोई संत या सती भजन करती है तो उसका स्पर्श मात्र परमात्मा से मिला देता है। कथा के पंडाल में इसलिए जाते है कि तपस्वी, उपासक, भक्त संत जो भगवान की मस्ती में डूबा होगा उसका स्पर्श हमारे जीवन को संवार देता है।