Maa Machna River Betul: (बैतूल)। बैतूल शहर सहित कई गांवों की जीवनरेखा माचना नदी इन दिनों भारी प्रदूषण से लगभग खत्म होने की कगार पर आ गई है। गौरतलब है कि नदी में सबसे अधिक गन्दगी शहरी क्षेत्रों से जा रही है। एक तरफ इंडस्ट्रियल वेस्ट और दूसरी तरफ नदी के किनारे बसे रिहायशी इलाकों से नालियों के माध्यम से पहुंच रही गंदगी सीधे माचना नदी में जाकर मिल रही है। सांझवीर टाईम्स ने नदी के प्रदूषण को लेकर एक पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। बैतूल शहर में पेयजल आपूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत माचना नदी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शहर के लोग जो पानी पी रहे हैं यह फिल्टर होने से पहले कितने भारी प्रदूषण से होकर गुजर रहा है।
जब इस बारे में सांझवीर टाईम्स ने फेक्ट चेक किया तो सबसे पहला बिंदु सामने आया प्लास्टिक वेस्ट और इंडस्ट्रियल वेस्ट का गंगूडोह से लेकर करबला घाट तक माचना नदी बैतूल शहर के किनारे से बह रही है। नदी के किनारों और नदी के अंदर भारी मात्रा में प्लॉस्टिक वेस्ट जिसमें पन्नियां, सिंगल यूज प्लास्टिक की भरमार है, जिससे पानी का बहाव पूरी तरह से बाधित हो चुका है। कोसमी इंडस्ट्रियल क्षेत्र से भी भारी मात्रा में कचरा माचना नदी में आकर मिल रहा है, जिससे नदी का पानी जहरीला हो रहा है। जल प्रदूषण की दूसरी सबसे बड़ी वजह है शहरी क्षेत्रों से नालियों के माध्यम से आने वाली गन्दगी। नदी के किनारे रिहायशी इलाकों में लोगों ने घरों में सोकपिट और सेप्टिक टैंक बनाने की बजाय सारा वेस्ट नालियों के जरिये माचना नदी में पहुंचाने के बंदोबस्त कर रखे हैं, जिससे नदी का पानी इस्तेमाल योग्य नहीं रह गया है ।
लोग खुद कर रहे नदी को बर्बाद (Maa Machna River Betul)
पर्यावरण संरक्षण में लगी ग्रीन टाइगर संस्था के तरुण वैद्य के अनुसार उन्होंने तीन माह कड़ा परिश्रम करके काजी जामठी से करबला घाट तक माचना नदी को साफ करने का अभियान चलाया था, जिसमें काफी कुछ समझने का मौका मिला। श्री वैद्य ने बताया कि माचना नदी से सटे ग्रामीण क्षेत्र के लोग नदी में प्रदूषण कम फैलाते हैं जबकि गंगूडोह से लेकर करबला घाट तक शहरी इलाकों के लोग माचना नदी को सबसे ज्यादा प्रदूषित कर रहे हैं। यहां नदी के घाटों पर कचरा फैलाना ,शौच करना, कपड़ेे धोने जैसी गतिविधियां आम बात हैं, परंतु इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। इस मामले की शिकायत सीएम हेल्पलाइन में कई बार कर चुके हैं, लेकिन कोई निपटारा नहीं हुआ। उनका मानना है कि अगर इसी तरह से माचना नदी की दुर्गति बनाई जाती रहेगी तो जल्दी ही नदी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। लोगों को समझना होगा कि माचना नदी सदियों से उनकी प्यास बुझा रही है और बैतूल शहर की जीवनरेखा है। वहीं जिला प्रशासन को इस ओर कड़े कदम उठाने की जरूरत है, क्योंकि जब तक सख्ती नहीं होगी। नदी में प्रदूषण को रोका नहीं जा सकेगा।
याचिका के बावजूद खरपतवार यथावत
पिछले दिनों बैतूल के वरिष्ठ पत्रकार इरशाद हिंदुस्तानी की स्थाई लोक अदालत में याचिका पर हुई सुनवाई के बाद में माचना नदी में फैली खरपतवार को साफ करने का मामला भी गरमाया था। हालांकि नदी को साफ नही किया गया बल्कि बारिश में आई बाढ़ से खरपतवार खुद ही साफ हो गई, लेकिन एक बार फिर उससे भी बदतर हालात बन गए हैं । माचना नदी खरपतवार, प्लास्टिक वेस्ट , इंडस्ट्रियल वेस्ट से भर गई है । तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है। इससे जिला मुख्यालय से गुजरकर जाने वाली जीवनदायनी मां माचना की हालत बद से बदतर हो गई है।
बबलू दुबे का सवाल- किस मुंह से माचना को मां कह रहे?
जीवनदायनी मां माचना की दुर्दशा पर इतने आक्रोशित है कि कहने से नहीं चूक रहे बढ़ते प्रदूषण और खरपतवार के कारण जीवनदायनी मां की हत्या करने जैसा प्रयास हो रहा है। उन्होंने सवाल किया है कि नगरपालिका जनप्रतिनिािधयों की मांग पर एक चौराहें के विकास के लिए 34 लाख रुपए खर्च करने को तैयार है फिर माचना के लिए राशि खर्च क्यों नहीं की जा रही? उनका कहना है कि लोग सिंगल यूज प्लास्टिक नदी में डाल रहे हैं । नदी के तट पर प्रतिबंधित गतिविधियां जैसे कपड़े धोना, पन्नियां फेंक देना आदि से नदी का जलप्रवाह रुक गया है।अगर ग्रीन टाइगर्स और हेमन्त बबलू दुबे जैसे जागरूक लोगों को छोड़कर बात करें तो माचना नदी में प्रदूषण रोकने के लिए अब तक किसी और ने ईमानदार प्रयास नहीं किये हैं । अब यह प्रशासन ,जनप्रतिनिधियों और आम लोगों को सोचना चाहिए कि आखिर किस मुंह से वो माचना को मां कहते हैं । अगर सही मायनों में माचना मां है तो उसकी पवित्रता को बनाए रखना सबकी जिम्मेदारी है।